दूसरी पारी

कितने सपने, आशा और भरोसा लेकर इंसान घर बसाता है। परन्तु ज़िंदगी का सूरज पश्चिम में पहुंचते-पहुंचते कई लोगों के सपने, आशा और भरोसा शून्य में विलीन हो जाते हैं।






लंबे समय से वृद्धाश्रम से जुड़े रहने के कारण कई अनुभव हुए। न जाने कितने बुजुर्गों को जीवन की शाम में वृद्धाश्रम में आकर सुरक्षा मिली। उन्हें एक घर मिला और शायद एक परिवार भी। ऐसा नहीं कि इन बुजुर्गों का कभी कोई घर या परिवार नहीं था। कई तो ऐसे भी थे, जो कि भरापूरा परिवार, घर, मकान छोड़कर वृद्धाश्रम की दहलीज पर स्वयं आए। यह सोचने पर कभी-कभी विवश करता है कि कितने सपने, आशा और भरोसा लेकर इंसान घर बसाता है। परन्तु ज़िंदगी का सूरज पश्चिम आकाश में पहुंचते-पहुंचते कई लोगों के सारे सपने, आशा और भरोसा शून्य में विलीन हो जाते हैं। फिर दूसरी पारी में एक थके हारे पक्षी की भांति मनुष्य एक नए नीड़ की तलाश करता है।



एक ऐसी ही कहानी यादों के पर्दे पर उभरी। बुजुर्ग ने अच्छी सरकारी नौकरी से ज़िंदगी की शुुुरूआत की। जीवनसाथी मिला। परिवार का विस्तार हुआ। खुद का घर बंधा। लड़की ब्याही। लड़कों को पढ़ाया। ज़िंदगी की राह पर चलना सिखाया। धन कमाकर परिवार का हित साधा। परन्तु पता नहीं किस मोड़ पर आकर अचानक ज़िंदगी की राह बदल गई।लंबे समय से वृद्धाश्रम से जुड़े रहने के कारण कई अनुभव हुए। न जाने कितने बुजुर्गों को जीवन की शाम में वृद्धाश्रम में आकर सुरक्षा मिली। उन्हें एक घर मिला और शायद एक परिवार भी। ऐसा नहीं कि इन बुजुर्गों का कभी कोई घर या परिवार नहीं था। कई तो ऐसे भी थे, जो कि भरापूरा परिवार, घर, मकान छोड़कर वृद्धाश्रम की दहलीज पर स्वयं आए। यह सोचने पर कभी-कभी विवश करता है कि कितने सपने, आशा और भरोसा लेकर इंसान घर बसाता है। परन्तु ज़िंदगी का सूरज पश्चिम आकाश में पहुंचते-पहुंचते कई लोगों के सारे सपने, आशा और भरोसा शून्य में विलीन हो जाते हैं। फिर दूसरी पारी में एक थके हारे पक्षी की भांति मनुष्य एक नए नीड़ की तलाश करता है।



एक ऐसी ही कहानी यादों के पर्दे पर उभरी। बुजुर्ग ने अच्छी सरकारी नौकरी से ज़िंदगी की शुुुरूआत की। जीवनसाथी मिला। परिवार का विस्तार हुआ। खुद का घर बंधा। लड़की ब्याही। लड़कों को पढ़ाया। ज़िंदगी की राह पर चलना सिखाया। धन कमाकर परिवार का हित साधा। परन्तु पता नहीं किस मोड़ पर आकर अचानक ज़िंदगी की राह बदल गई। घर,घर नहीं रहा। सीमेंट-कांक्रीट का ढांचा बन गया। बुजुर्ग सज्जन ने वृद्धाश्रम में आकर सेवा देने की इच्छा जताई। आश्रम में ही निवास की व्यवस्था हुई। शुरू-शुरू में घर आना-जाना चलता रहा। बार-बार घर आते रहे। उनकी मांग और ज़रूरतों को पेंशन से पूरी करते रहे। आखिर एक पिता जो थे। फिर आना-जाना कम हुआ और एक दिन पूरी तरह से परिवार से दूर होने के लिए वैदिक रीति से वानप्रस्थ आश्रम अंगीकार कर लिया। फिर कभी घर की तरफ रुख नहीं किया। अंतिम सांस वृद्धाश्रम में ली। जाते समय भी अपनी ज़िंदगी के "अजान रहस्य" को सीने में दबा रखा। एक अन्य कहानी, जहां एकमात्र पुत्र ने विधुर पिता पर गंभीर आरोप लगाकर घर से बाहर किया। पिता सेवानिवृत शिक्षक थे। पुत्र भी प्राध्यापक था। एक बेटी भी। अच्छे घर में विवाह हुआ। संपन्न परिवार। कहीं कोई कमी नहीं थी। पिता भी पेंशनर। परंतु जीवन का टूटा तार जुड़ नहीं पाया। वृद्धाश्रम का सहारा मिला। आश्रम ने प्रयास किया कि तार जुड़ जाएं - घर के बंद दरवाजे खुल जाएं। प्रयास असफल रहा। प्राण पक्षी ने वृद्धाश्रम के प्रांगण से महाशून्य के लिए उड़ान भरी। पुत्र, पिता के अंतिम संस्कार के लिए नर्मदा तट पर ले गया। पुत्र के कर्तव्य की इति श्री।

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